राहुल गांधी बड़ी जीत के बावजूद दुविधा में क्यों फँसे हैं? - BBC News हिंदी (2024)

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  • Author, कीर्ति दुबे
  • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार राहुल गांधी बुधवार को केरल पहुँचे.

राहुल ने कहा कि वह इस कश्मकश में हैं कि वायनाड और रायबरेली में से किसे चुना जाए.

मल्लापुरम में अपनी रैली के दौरान उन्होंने जनता से कहा, “मेरे सामने दुविधा है कि मैं वायनाड से सांसद बनूं या रायबरेली से?”

राहुल गांधी ने ये भी कहा कि नतीजे दिखाते हैं कि देश में नफ़रत और घमंड को मोहब्बत और एकता से हरा दिया है.

राहुल ने कहा, “अच्छी बात ये है कि उन्हें (मोदी और अमित शाह को) बुनियादी ग़लतफ़हमी थी. उन्हें लगता था कि सत्ता में होने की वजह से ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स वालों को ये बता सकते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए. केरल के लोगों, उत्तर प्रदेश के लोगों और सभी राज्यों के लोगों ने दिखा दिया कि बीजेपी ये नहीं बता सकती कि उन्हें क्या करना चाहिए. लोगों ने ये भी संदेश दिया कि संविधान हमारी पसंद है, इसके साथ छेड़छाड़ मत करो.”

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राहुल रायबरेली से लगभग चार लाख मतों के अतंर से जीते हैं और वायनाड से भी तीन लाख 60 हज़ार से. लेकिन यह जीत राहुल गांधी को द्वंद्व में डाल चुकी है.

ये पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने अपनी ये दुविधा ज़ाहिर की है बल्कि चार जून को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और शाम को दिल्ली के 24 अकबर रोड पर कांग्रेस दफ़्तर के हॉल में राहुल गांधी ने चुनाव नतीज़ों के बाद पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो वहां भी उसने यही सवाल पूछा गया कि - आखिर राहुल गांधी संसद में कहाँ का सांसद बन कर प्रवेश करेंगे.

राहुल गांधी का जवाब उस दिन भी यही था कि “ये मुश्किल चुनाव है लेकिन आने वाले दिनों में इसका जवाब मिल जाएगा.”

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रायबरेली बनाम वायनाड

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यक़ीनन 22 जून को इस सवाल का जवाब मिल ही जाएगा क्योंकि इस दिन 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो रहा है और इसका आगाज़ सांसदों की शपथ से होगा.

लेकिन ये तय करना राहुल गांधी के लिए मुश्किल तो होगा.

एक तरफ़ है केरल की वायनाड सीट, जिसने उन्हें तब संसद में पहुंचाया जब वो अपने ही गढ़ अमेठी में हार गए. तो दूसरी है उनके परिवार की पारंपरिक सीट रायबरेली जहाँ से गांधी परिवार पिछले तीन पुश्तों से चुनाव लड़ रहा है.

उनके दादा फिरोज़ गांधी, इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी तीनों रायबरेली से चुन कर संसद जाते रहे.

इस बार जब पहली बार राहुल गांधी रायबरेली सीट से उम्मीदवार बने तो उनकी मां और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने बड़ी भावुक अपील की थी. सोनिया गांधी ने कहा था- मैं रायबरेली को अपना बेटा सौंप रही हँ...”

ये चीज़ें राहुल गांधी के पक्ष में भी गईं और उन्होंने रायबरेली सीट पर 3 लाख 90 हज़ार वोटों से जीत हासिल की. इसी तरह वायनाड सीट पर उनकी जीत का अंतर 3 लाख 64 हज़ार रहा.

दोनों ही सीट से राहुल गांधी जितने बड़े अंतर से जीते हैं उतने अंतर से तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से नहीं जीत सके.

ऐसे में दोनों ही सीटों पर उन्हें बड़ा जनादेश मिला है.

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कांग्रेस की राजनीति पर क़रीब से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई मानते हैं कि इसमें कोई किंतु-परंतु जैसी बात ही नहीं है, राहुल गांधी रायबरेली ही चुनेंगे और यही राजनीतिक रूप से सही फ़ैसला होगा.

वह कहते हैं, “ जिस तरह की भावुक अपील सोनिया गांधी ने की और जिस तरह राहुल गांधी ने अपनी सीट बदली इससे ही ये साफ़ हो गया था कि अगर सीटों के चुनाव की बात आई तो वो रायबरेली ही चुनेंगे. साथ ही ये भी समझना ज़रूरी है कि रायबरेली गांधी परिवार की सीट है और अगर वो ये सीट छोड़ देंगे तो उनके लिए अपना गढ़ खो देने जैसी स्थिति बन जाएगी. यूपी में इंडिया ब्लॉक का जिस तरह का समर्थन रहा है उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता राहुल गांधी के मन में कोई दो राय है.”

वो मानते हैं कि कांग्रेस के पास नेता हैं, जिन्हें वो वायनाड सीट से लड़ा सकते हैं.

रशीद किदवई कहते हैं, “कांग्रेस में ही एक खेमा ऐसा है जो ये सुझाव दे रहा है कि वायनाड से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ा देना चाहिए, ऐसा करने से ये संदेश वायनाड की जनता के बीच जाएगा कि वो कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मुझे लगता है ऐसा ना भी हो और कोई अन्य स्थानीय कांग्रेस नेता वहाँ से चुनाव लड़े तो ये भी सही रहेगा. वो नेता तो भाषाई स्तर पर वायनाड की जनता से बेहतर तरीक़े से संवाद कर सके.”

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किदवई मानते हैं कि इससे ज़्यादा दिलचस्प ये देखना होगा कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष का पद लेते हैं या नहीं.

बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल गांधी को संसद में नेता प्रतिपक्ष की ज़िम्मेदारी देने का प्रस्ताव दिया. प्रस्ताव देते हुए उन्होंने चुटकी वाले अंदाज़ में ये भी कह दिया कि अगर राहुल गांधी ने ये पद नहीं लिया तो वो गांधी पर ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ करेंगे.

हालांकि अब तक राहुल गांधी ने इस प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं दिया है, संसद का सत्र इस सवाल से भी परदा उठाएगा.

किदवई कहते हैं, “ नेता प्रतिपक्ष शैडो प्रधानमंत्री होता है. पूरे विपक्ष का ना सिर्फ़ वो नेतृत्व करता है बल्कि कई ज़रूरी नियुक्तियों में पीएम के साथ बैठता है. जिस तरह का चुनाव कैंपेन हमने पीएम मोदी और राहुल गांधी के बीच देखा है, इसमें कोई दो राय नहीं है कि दोनों एक दूसरे पर तीखी बयानबाज़ी करते हैं. ऐसे में पीएम के साथ बैठ कर फ़ैसले ले पाना और कामचलाऊ रिश्ते कायम कर पाना राहुल गांधी के लिए चुनौती होगी लेकिन अगर वो खुद को एक परिपक्व नेता के तौर पर और मज़बूत करना चाहते हैं तो उन्हें ये करना होगा.”

किदवई ये भी मानते हैं कि ये राहुल गांधी को किसी भी सूरत में नेता प्रतिपक्ष का पद लेने से इनकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उनकी नेतृत्व करने की छवि को धक्का लग सकता है.

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गांधी परिवार और रायबरेली सीट

1952 में फ़िरोज गांधी रायबरेली से जीत कर संसद पहुंचे.

रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ रहा है. इंदिरा गाधी रायबरेली से सांसद रहते हुए देश की प्रधानमंत्री रही हैं.

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी जनता पार्टी के राज नारायण से चुनाव हार गई थीं. इस हार के साढ़े तीन सालों के अंदर रायबरेली की जनता ने इंदिरा गांधी को 1980 में वापस चुन लिया था. हालांकि, तब उन्होंने इस सीट को छोड़ कर मेडक सीट को अपने पास रखा था.

यहां तक कि जब कांग्रेस के पास यह सीट नहीं थी, तब भी गांधी परिवार के साथ इसका संबंध मज़बूत रहा. राजीव गांधी सरकार में अहम भूमिका निभाने वाले अरुण नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी की बुआ शीला कौल तक इस सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं.

जब तक सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला नहीं किया तब तक गांधी परिवार के करीबी सतीश शर्मा रायबरेली से सांसद रहे.

फिर 2004 से से सीट सोनिया गांधी की हो गई.

अब 2024 में ये सीट राहुल गांधी को मिली वो भी बड़े वोटों के अंतर से.

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राहुल आख़िर वायनाड गए क्यों

जब साल 2019 में राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से पर्चा भरा तो कई राजनीति के जानकारों का मानना था कि उस समय भी संभवतः उन्हें वायनाड और अपनी पुरानी सीट अमेठी में से एक को चुनना पड़ेगा. लेकिन उस चुनाव में राहुल गांधी के हाथ ये मौका नहीं मिला.

उन्हें उनके गढ़ में बीजेपी नेता स्मृति इरानी ने हरा दिया था. वहीं स्मृति इरानी जिनका इस बार अमेठी सीट से हारना साल 2024 के चुनावों में हुई हाई प्रोफ़ाइल हार में से एक है.

लेकिन अब राहुल गांधी के लिए मामला थोड़ा अलग है. इस बार उन्हें एक सीट छोड़नी है और तय करना है कि वो किस सीट का सांसद कहलाना चाहते हैं.

लेकिन ये समझिए कि वानयाड राहुल गांधी के लिए क्यों चुना गया था.

राहुल गांधी के लिए वायनाड ही क्यों चुना गया. उसका एक कारण है कि केरल का वायनाड कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है. इस सीट से 2009 से 2019 तक कांग्रेस नेता एमआई शनवास पिछले दो बार से चुनाव जीत चुके हैं.

राहुल गांधी की इस सीट पर एंट्री के पीछे पार्टी के आंतरिक कलह की बात की जाती थी. माना जाता है कि साल 2019 में इस सीट को राहुल गांधी के लिए चुनने के पीछे का एक कारण पार्टी की भीतरी कलह को ख़त्म करना था. केरल कांग्रेस के दो बड़े नेता रमेश चेन्नीथ्ला और ओमान चांडी के बीच वायनाड सीट को लेकर मतभेद था.

तय नहीं हो पा रहा था कि वायनाड सीट से कौन उम्मीदवार हो. तो राहुल गांधी को मैदान में उतार कर इसका हल निकाला गया.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का ये भी मानना था कि केरल में चुनाव लड़ने के पीछे एक और संदेश छुपा है. कांग्रेस कोशिश कर रही थी कि वो अपना वर्चस्व पूरे देश में स्थापित करे. इसका फ़ायदा भी कांग्रेस को इस चुनाव में हुआ है. राज्य की 20 सीटों में से 14 सीटें कांग्रेस को मिली हैं. यहां लेफ्ट कांग्रेस के आस-पास भी नहीं टिका.

केरल अकेला दक्षिण राज्य है, जहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है और दहाई में सीटें जीत सकी है.

ऐसे में वायनाड को छोड़ते समय पार्टी को ये सुनिश्चित करना होगा कि इसका कोई नकारात्मक संदेश केरल और वायनाड की जनता को ना जाए और राहुल गांधी वहां के लोगों के लिए ‘अवसरवादी और अहसान फ़रामोश’ राजनेता की छवि में ना दिखें.

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